इन्डियन असोसिएशन ऑफ़ टीचर्स एजुकेटर्स के नॅशनल सेक्रेटरी प्रोफ़ेसर एन,एन,पाण्डेय का कहना है की "उस दौर के शिक्षकों में जानने की ललक थी परन्तु अब के शिक्षक सब कुछ पा लेना चाहते हैं ",इसका अर्थ यह है की आज के शिक्षकों में प्रतिबद्धता नहीं है ,आज के शिक्षक डायनामिक है और शिक्षण व्यवसाय में संलग्न शिक्षक समुदाय के अन्दर निम्न नैतिकता एवं व्यावसायिक संतुष्टि एक चुनौती के रूप में दृष्टिगोचर हो रही है .यदि हम यहाँ अनुदानित विद्यालयों ,उच्च शिक्षण संस्थानों ,सरकारी विद्यालयों की बात छोड़ दें और उन निजी संस्थानों के रूप में कार्य कर रहे कोचिंग संस्थानों की बात करें तो एक बहुत ही चौंकाने वाली बात सामने आएगी जिन्हें हम सभी लोगों ने हमेशा नजरअंदाज किया है ,यहाँ हम उन कोचिंग संस्थानों की भी बात नहीं करेंगे जो माध्यमिक शिक्षा ,दसवीं ,ग्यारहवीं और मेडिकल,इंजीनियर बनाने के लिए शिक्षा दे रहें हैं ,बल्कि हमें उन कोचिंग संस्थानों पर ध्यान देना है जो देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को कोचिंग देते हैं ,इलाहबाद में इन कोचिंग संस्थानों की स्थिति पहले से ही भयावह थी,परन्तु दिल्ली की स्थिति पर अब गौर करना आवश्यक हो गया है .कोचिंग संस्थानों की मनमानी को रोकने के लिए ही संघ लोक सेवा आयोग ने पाठ्यक्रम में बहुत ही आमूल चूल परिवर्तन किये हैं ,परन्तु कोई साफ़ दिशा निर्देश न होने से न तो विद्यार्थी समझ पा रहे हैं की क्या करना है न ही शिक्षक समझ पा रहे हैं की उन्हें क्या बताना है (वैसे संघ लोक सेवा आयोग हमेशा एक कदम आगे होता है और शिक्षक दो कदम पीछे) ,परन्तु फिर भी छात्र शिक्षकों के भरोसे ही हैं .ऐसे में शिक्षकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है ,परन्तु बहुत तेजी से फैले इस व्यवसाय में पढ़ाने वाले शिक्षक वे लोग हैं जो किसी प्रकार सिविल सेवा में जाने में असफल रहे ,और इस व्यवसाय को चुना ,इस व्यवसाय में वे सफल भी हैं आर्थिक रूप से और जीवनयापन करने के स्तर से भी परन्तु कुंठा अभी भी है इनमे .इसका कारण यही है की ये अपने आपको दिल्ली में स्थापित रखने और कोचिंग व्यवसाय में बने रहने ,दुसरे शिक्षक से अधिक फीस बढ़ा देने और बाजार में अपनी किताब निकाल देने की होड़ में लगे रहते हैं .इस प्रकार वे शिक्षण कार्य को अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ पाते और एक बहुत बड़ी फ़ौज जो आई ए एस ,पी सी एस और तमाम बड़े ओहदे को पाने का सपना लेकर आती है उसके साथ बहुत बड़ा प्रपंच खेलते हैं है।हर वर्ष ये शिक्षक अलग अलग कार्यक्रम चलाते हैं जो साप्ताहिक टेस्ट से सम्बंधित होता है और इन टेस्ट पेपर्स को अपने उन छात्रों से तैयार करवाते हैं जो कभी प्रारंभिक परीक्षाओं को भी पास नहीं कर पाए ,ऐसे में उन टेस्ट की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है ,और यह प्रक्रिया हर नए छात्र को आकर्षित करने के लिए होती है पुराने छात्र बार बार धोखे मिलने पर गुणवत्ता के बारे में यह जान जाते हैं की कौन से सामग्री उचित है और कौन से अनुचित,ऐसे में बहुत समय निकल चुका होता है।और आई ए एस ,पी सी एस एक सपना बन जाता है
दिल्ली में इन शिक्षण संस्थानों में शिक्षण कार्य के पीछे हॉस्टल का व्यवसाय भी चलता रहता है,जिनमे रहना छात्रों की मजबूरी है और आवश्यकता भी, पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रांगण में कुछ छात्र-छात्राओं ने अनशन किया था की उन्हें कम से कम में आवास सुविधा उपलब्ध कराई जाये ,परन्तु इन निजी संस्थानों अर्थात कोचिंग संस्थानों से सम्बंधित होस्टल्स में कोई सुनवाई नहीं है ये लोग भारत के निवासी भी हैं इस पर भी संदेह है ये लोग टैक्स की चोरी करते हैं बिजली का बिल 7रूपया प्रति यूनिट से लेते है ,बिल कभी नहीं देते हैं दो तीन साल पहले सिविल सर्विसेज की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों ने भी एक रैली निकाली थी इनके विरोध में ,पर इन लोगों ने चप्पल जूते फेंक फेंक कर अपमानित किया था और साथ में बड़ी बड़ी धमकियाँ भी की कमरे का किराया बढेगा और बिजली का बिल भी ,नतीजा यह हुआ की भावी अधिकारी वर्ग शांत भाव से अध्ययन और अध्यापन में लग गया ,अब इतनी मुश्किल परिदृश्य में यदि शिक्षण सामग्री भी धोखे देने वाली हो तो सब कुछ अन्धकार में हो जाता है
कुशल शिक्षक ही सर्वगुण संपन्न विद्यार्थियों एवं समाज का निर्माण कर सकता है ,वर्तमान समय में शिक्षकों की आर्थिक स्थिति बहुत तेजी से बदली है क्योंकि इन्होने अपनी फीस दोगुना कर दिया अचानक जो शिक्षक हिंदी और दर्शनशास्त्र पढ़ाते थे वह सामान्य अध्ययन में सम्मिलित सारे विषय(भूगोल गणित ,विज्ञान ,विज्ञानं और प्रौद्योगिकी संविधान तार्किक क्षमता,अंग्रेजी इतिहास राजनीती विज्ञानं,पर्यावरण) सब कुछ पढ़ाने लगे और लोग एडमिशन भी लेने लगे ,लोक प्रशाशन पढ़ाने वाले शिक्षकों ने भी यह करना प्रारंभ कर दिया .ऐसे में गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगता है ,50हजार तक की फीस लेने वाले ये शिक्षक मात्र 3 महीने में पूरे विषय को पढ़ाने का दावा करते हैं जो मृग मरीचिका है .इन शिक्षकों का बहिष्कार होना चाहिए .
आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत होने के कारण इनका स्वयं का व्यक्तित्व एवं शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है ये शिक्षक अन्य व्यवसाय भी शुरू कर रहे हैं ,अपने भविष्य को सुरक्षित करते हुए ये लोग छात्रों के साथ बहुत बड़ा अन्याय कर रहे हैं . ऐसे में आवश्यक हो जाता है की समाज ऐसे शिक्षकों पर नजर रखे मुख्यतया वे छात्र जो इन बड़ी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहते हैं
इन शिक्षकों की विद्रूप परंपरा को बढ़ावा मिला है कुछ समाचार पत्रों के द्वारा भी जो छात्रों में बहुत प्रसिद्द(द हिन्दू,दैनिक भास् कर,) है ,इन समाचार पत्रों में यदि इन कोचिंग संस्थानों को प्रचार मिल जाता है तो ऐसा लगता है की उन्हें उत्कृष्टता का प्रमाणपत्र मिल गया है ,यह प्रचार दोनों तरफ से ही होता है ,कोचिंग संस्थान कहते हैं की इनको पढो और समाचार पत्र कहते हैं की इसमें पढो,यह कालचक्र जमींदार और किसान की तरह चलता रहता है ,पिछले दिनों एक शिक्षक के यहाँ जो हिंदी के प्रसिद्द शिक्षक हैं उनके यहाँ "कर अधिकारियों" का छापा पड़ा जो अचानक से सामान्य अध्ययन पढ़ाने लगे थे .
ऐसे में सभी बिन्दुओं पर दृष्टिपात करें तो यह लगता है यहाँ जिन परम्पराओं का निर्माण हो रहा है की एक दुसरे की आर्थिक स्थिति देखकर लोग शिक्षक बन रहें है ,इनमे संवेदनहीनता है,और इतने बड़े वर्ग को जिन्हें ये लोग खड्ड में डाल रहें है ये देश के विकास में किस प्रकार सहायक होंगे?और गलती से अधिकारी बन भी गए तो ऐसे अनैतिक लोगों से देश में क्या संस्कार पैदा होगा ,ध्यान देने पर यह स्पष्ट हो जाता है की हमारी शिक्षण संस्थाओं,शैक्षिक पाठ्यक्रमों एवं शिक्षा की पद्धति में कहीं न कहीं कोई असंगतता अवश्य है जिसके कारण हमें ऐसे समाज का दर्शन हो रहा है ,और जिसमे आई ए एस ,पी सी एस,जैसे जिम्मेदारी भरे पदों पर आसीन होने वाले लोगों की तैयारी करवाने वाले शिक्षक ऐसे व्यक्तित्व का परिचय दे रहें हैं जिनमे पूरी अराजकता अशांति,स्वार्थ,कुंठा ,और अपने को सम्पूर्ण समझने का प्रयास है क्योंकि ये शिक्षक समाज में अनैतिक कार्य और इतनी कमियों के बाद भी बहुत प्रसन्न दिखाई देते है
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