जनसँख्या स्थिरीकरण:तात्कालिक और दूरदर्शी आवश्यकता
जनसंख्या
मानव समूह का ऐसा प्रखर पुंज है,जो निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र में जैविक
संसाधनों के अतिरिक्त प्राकृतिक व्यवस्था को बनाये रखते हुए;
आर्थिक,सामाजिक,विकास के माध्यम से समस्त मानव जाति का अस्तित्व बनाये हुए
है!जनसंख्या एक ऐसी समस्या भी है, जो लगातार पांव पसार रही है और इस समस्या
से भारत वर्ष ही नहीं समस्त विश्व जूझ रहा है! जनसंख्या बढती जा रही है
संसाधन घटते जा रहे है. विश्व की प्रतिवर्ष होने वाली जनसंख्या वृद्धि में
भारत का योगदान लगभग एक करोड़ साठ लाख हुआ करता है. जबकि भारतवर्ष विश्व के
उन प्रमुख देशों में से एक है जहां जनसंख्या वृद्धि की विस्फोटक स्थिति
को भांपते हुए 1952 में ही परिवार नियोजन की शुरुआत कर दी गयी थी और
"जनसंख्या नियंत्रण,संतुलन और स्थिरीकरण" पर विस्तृत चर्चा भी की गयी
थी.परन्तु. वर्तमान समय में इसका बहुत व्यापक असर दिखाई नहीं पड़ता.वैसे तो
पहले एक भारतीय महिला प्रजनन आयु में औसतन 6 बच्चों को जन्म देने की
क्षमता रखती थी . परन्तु अब यह घटकर 2.85 पर पहुंच चुकी है, फिर भी
जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण नहीं हो पाया है इसका कारण यह पाया गया की अभी
भी "अधिक जन्मदर तथा निम्न मृत्यु दर" की स्थिति में प्रजनन आयु वर्ग के
दम्पत्तियों की संख्या का प्रतिशत कुल जनसंख्या के अनुपात में सर्वाधिक है
और उसके आगे भी कुछ कारण हैं जैसे -गर्भनिरोधन की सेवाओं का ना प्राप्त हो
पाना,निरक्षरता इत्यादि मुख्य हैं.छत्तीसगढ़ का उदाहरण देना आवश्यक है यहां
पर "जनसंख्या स्थिरीकरण" शासकीय,अशासकीय के समेकित समन्वित प्रयास से
स्थापित किया जा रहा है.छत्तीसगढ़ की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का
2.03प्रतिशत है और यहां पर जनसंख्या स्थिरीकरण के ऐसे कार्यक्रम संचालित
किये जा रहे हैं जिनमे महिलाओं की भागीदारी परिवार कल्याण कार्यक्रमों के
प्रति सर्वाधिक है.90% महिलाऐं इनमे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं परन्तु अब
भी यहां 3 या इससे भी अधिक बच्चों को जन्म देने वाली माताओं का प्रतिशत
47.01 है. जबकि छत्तीसगढ़ में महिलाओं की साक्षरता का प्रतिशत है 52.28%
है.इन बिन्दुओं पर सामाजिक स्तर पर रचनात्मक एवं ठोस पहल अत्यंत आवश्यक है
.ये कार्यक्रम इसलिए 100 प्रतिशत सफल नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि इसमें
पुरुष सहभागिता की अत्यंत कमी है जो की अपेक्षित है.पुरुषों का सहयोग होगा
तभी जनसंख्या स्थिरीकरण की राष्ट्रीय नीति को सफल स्वरुप दिया जा सकता है !
सभ्यता की ओर उन्मुख मानव जाति "आहार ,आवास,वातावरण तथा प्राकृतिक
सुविधाओं" को प्राप्त करने हेतु मानव समूहों को वर्गों में बांट-बांट कर भी
वृद्धि कर रही है !इस विकास के साथ ही भौगोलिक क्षेत्र तथा प्रकृति के
साम्राज्य में कटौती हो रही है .जो की आने वाले समय के लिए बहुत ही घातक है
.
जनसंख्या स्थिरीकरण की
आवश्यकता क्यों है ?ये भारत वर्ष का लगभग हर व्यक्ति जानता है फिर भी
स्पष्ट रूप से यदि देखा जाये और अधिक केन्द्रित होकर महसूस किया जाये तो
तमाम कारण स्पष्ट होते हैं! जैसे- सामाजिक आर्थिक संतुलन बनाना,खाद्य
सुरक्षा,बेहतर बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना,आवासीय समस्या
का समाधान,निर्धनता और बेरोजगारी उन्मूलन, गांव से शहरों की ओर पलायन
रोकना,सामाजिक शांति और सुरक्षा एवं समाज में नैतिक मूल्यों को बनाये रखने
जैसे अति महत्वपूर्ण कारण है और देश की तात्कालिक समस्याओं में शुमार हैं !
22जुलाई 2002 को "जनसंख्या
स्थिरीकरण कोष" का गठन का किया गयाथा, यह घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा
राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग की पहली बैठक के संबोधन के समय किया गया था और 100
करोड़ रुपये प्रारंभिक पूँजी के रूप में उपलब्ध कराया गया! सामान्य लोगों
को नियमों और सुविधाओं की पहल के द्वारा प्रेरित करने के लिए विशेष
प्रयास भी किये गए, वैसे तो राष्ट्रीय नीति का उद्देश्य 2010 तक
दम्पत्तियों की बच्चों की प्रजनन संख्या को घटाकर 1.6 पर लाना था और
प्रजनन शिशु स्वस्थ्य कार्यक्रम को बहु आयामी बनाया जाना था पर लक्ष्यों
को प्राप्त नहीं किया जा सका.
राष्ट्रीय नीति तो अच्छी है
परन्तु इस कार्यक्रम के लिए "आम जनों का सहयोग" ही अधिक अपेक्षित दिखाई
पड़ता है .देश के दम्पत्तियों को यह याद रखना होगा की यदि जनसंख्या
स्थिरीकरण की वैचारिक उर्जा को वे ग्रहण करने में असमर्थ रहे तो
अभावग्रस्त,अल्प सुविधाभोगी जैसे हर क्षेत्र में असुविधा झेलने की नियति को
प्राप्त होंगे.नियति अभिशाप ना बन सके इसके लिए जरूरी है की राष्ट्रीय
नीतियों का पालन "अच्छी और दृढ इच्छाशक्ति "
से निभाने के भरपूर प्रयास उन्हें करने होंगे वे एक सफल और दृढ
मनोबल विकसित करें तभी हमारा देश जनसंख्या स्थिरीकरण के अपेक्षित राष्ट्रीय
उद्देश्य को प्राप्त कर पायेगा और हम विकास की ठीक परिभाषा को ग्रहण कर
पाएंगे .
vandita u raise an extraordinary issue carefully...u chose only the focus areas of concern so that we as the citizen and the govt. of india can take this issue as seriously as u have raised it..
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