Tuesday, 20 November 2012

 विज्ञानमय: शिक्षा और दृष्टिकोण 

गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर ने अपनी एक कृति में  कहा था "जहाँ तर्क की स्पष्ट धरा  बुराइयों के दलदल में दिग्भ्रमित न हो ,जहाँ सतत प्रखर हो रहे विचार और कार्य की और हमारा मन उन्मुख हो ,परमपिता से मेरी प्रार्थना है की वे ऐसी आजादी से परिपूर्ण स्वर्ग में मेरे देश को उदित करें!"
भारतीय साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का यह छोटा पर अद्भुत प्रसंग है !
हमारे भारतीय ग्रन्थ,वांग्मय जैसे महाभारत और उपनिषद में चर्चा परिचर्चा ,बहसों विवादों,प्रश्नों तथा संवादों से भरे हैं!दरअसल चर्चा ,बहस और विश्लेषण वैज्ञानिक दृष्टिकोण के ही अभिन्न अंग हैं ,विज्ञानं सत्य का उद्घाटन करता है और प्रकृति के छिपे रहस्यों से पर्दा उठता है ,परन्तु प्राकृतिक रहस्य को समझना और उसके रहस्यों के विषय पर एक व्यक्ति के मन में उठी जिज्ञासाओं को पूर्ववर्ती अवधारणाओं से जांचना परखना भी आवश्यक है!जिज्ञासा कमोवेश हर व्यक्ति में होती है इसका अर्थ यह है की वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मूल आधार सबमे निहित होता है केवल उसे अभ्यास की मदद से जीवन के साथ जोड़ना अपेक्षित है इस अभ्यास से व्यक्ति का मस्तिष्क अति जिज्ञासु और ग्रहणशील हो जाता है .सबसे आकर्षक बात यह है की कोई भी इसको अपना सकता है क्योंकि मनुष्य में अदम्य क्षमता है !

'स्वतंत्र भारत के लिए विज्ञानं'और वैज्ञानिक दृष्टिकोण नेहरू जी के मन में तब उपजे जब वे कारावास में थे ,हम जैसे ही कागज़ और प्लास्टिक का उदहारण लेकर समझते हैं की कागज़ का तो प्रकृति में पुनर्चक्रण हो जाता है पर प्लास्टिक का नहीं क्योंकि यह वर्षों तक ये प्लास्टिक मिटटी में पड़े रहते हैं और नष्ट नहीं होते तथा प्रकृति को नुक्सान भी पहुचाते हैनौर संतुलन बिगड़ते हैं ,यह तथ्य जानने के बाद जागरूक व्यक्ति को प्लास्टिक का न्यूनतम उपयोग या न के बराबर उपयोग करने की आदत दाल लेनी चाहिए 
भारतीय संविधान के मूल कर्तब्य के भाग 4क में वैज्ञानिक द्रिस्तिकों को स्थान देकर हमें चैतन्य किया गया है की यह दृष्टि मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का आवश्यक आधार है .
विज्ञानं की संकल्पनाएँ साधारण पढ़े लिखे लोगों के अधिक पल्ले नहीं पद पाती  पर भाषा और शैली साधारणतम  हो तो जटिल बातों को वे आसानी से समझ लेते हैं ,और नहीं समझते तो पढ़े लिखे वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले व्यक्तियों को समाज के साधारण लोगों और देश के लिए यह बीड़ा उठाना होगा की वे उन्हें जागरूक बनायें क्योंकि विकास की परिभाषा यही है की "चाहे कोई वैज्ञानिक हो डाक्टर हो ,न्यायाधिकारी हो ,प्रशाशनिक अधिकारी हो या कोई प्रचलित व्यक्ति हो उसे दंभ में झूमने के बजाय  आम आदमी के लिए उत्तरदायी होना होगा और उसे भी उत्तरदायी  बनाना होगा!"
भारत सरकार ने 1982 में विज्ञानं  एवं प्रौद्योगिकी विभाग ,भारत सरकार के अंतर्गत राष्ट्रीय विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् (एन सी एस टी सी )का गठन  किया जिसका उद्देश्य विज्ञानं को लोकप्रिय बनाकर समाज में वैज्ञानिक जागृति  लाना है !एन सी एस टी सी विज्ञानं को केंद्र में रखकर कार्यशाला ,संगोष्ठी ,नुक्कड़,नाटक ,टी वी,रेडियो ,धारावाहिक आदि जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करता रहता है इसके लिए स्वायत्त संस्थान  "विज्ञानं प्रसार" की स्थापना की गई है ,और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने "वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग" की स्थापना की है !
विद्यालयों से यह निवेदन है की बच्चों के अधिकार की वस्तुएं उन्हें उन तक पहुचाएं ,भारत सरकार की योजनाओं का लाभ उठायें और भ्रष्टाचार को पनपने से रोकें ! आप प्रश्न करेंगे तभी तो जवाब दिया जायेगा ! आप स्वतः  पहल नहीं  करेंगे तो भारत सरकार की योजनाओं में दीमक तो लग ही रहें हैं और लगते रहेंगे !सबसे अनुरोध है मेरा अपना काम इमानदारी और वैज्ञानिक सोच के साथ करें ,शिक्षकों से आशा है की वे सबका विकास करें अपना और समाज का क्योंकि यह वर्ग ऐसा वर्ग है जो 65 सालों से आराम ही कर रहा है और प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से आराम करने की सलाह भी दे रहा है ...

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