
पिछले दिनों श्री मार्कंडेय काटजू को लीगल नोटिस भेजी गई थी कुछ लॉ के छात्रों द्वारा की उन्होंने यह कह कर आम जनता का अपमान किया है की देश की 90 प्रतिशत जनता बेवकूफ है ,,मैंने पेपर में पढ़ा तो सोचने लगी की काटजू सर कैसे इस बात को सिद्ध कर पाएंगे क्या कोई सॉलिड पैमाना बना है मूर्खों की मूर्खता मापने का?कोर्ट तो प्रमाण मांगता है ?तो मैंने सोचा की इस बात को सिद्ध करने के लिए कोर्ट में ही कुछ प्रैक्टिस कराइ जाये तो उचित होगा और न्यायाधीश को साक्षात् प्रमाण उसी वक़्त मिल सकते हैं क्योंकि मुझे तो पूरा भरोसा है की काटजू सर बिलकुल सही कह रहे है
वैसे ये 90 फ़ीसदी का पैमाना लगभग हर जगह ठीक बैठता है अब पत्रकारों को ही ले लीजिये 90 फ़ीसदी पत्रकार एक ही राग अलापते हैं नवीनता के और बुद्धिमत्ता के पत्रकारों में दुर्लभ उदाहरण हैं।लगभग 90 फ़ीसदी पत्रकार किसी न किसी राजनैतिक दल का कबाब उड़ा रहे हैं।लगभग यही प्रतिशत पत्रकारों का 90 फ़ीसदी समय सरकार को गली गलौज में गुजरता है यही प्रतिशत खास धर्म के तुष्टिकरण में अपना समय गुजारता है।ये बात तो पत्रकारों की हो गयी अब "चिन्तक" आते हैं दुसरे पायदान पर ये ऐसा महारथी वर्ग है जिसकी बौद्धिकता का पैमाना उनके अन्दर "हिन्दू धरम विरोधी" भावना पर निर्भर है।इनकी तेजस्विता सिर्फ इस पर निर्भर है की वो हिन्दू धर्म को अत्यधिक अपशब्द बोल सकें।
इन्ही बौद्धिक चिंतकों में लगभग 90 फीसदी समाज सेवी है (भले ही समाज की 90 फीसदी सेवा न हो प् रही हो ) और इनका पैमाना भी कुछ खास जगहों पर केन्द्रित है जैसे कश्मीर पकिस्तान को दे दिया जाये मुस्लिमों को मनचाहा आरक्षण दलितों को मनचाही छूट यहाँ तक भी ठीक था पर अगर ये ब्राह्मणों को गली देना भूले तो इनकी बौद्धिकता ,बौद्धिक समाज में मिटटी में मिला दी जाती है इसका ख्याल इन 90 फीसदी लोगों को जरूर रहता है !
एक नवीन बौद्धिक वर्ग उभर रहा है या ये कहें की खुद को उभरे दे रहा है ये हैं "दलित चिन्तक"....काश ये दलित चिंतन आंबेडकर से शुरू हुआ होता तब तक तो फिर भी शुभ था पर इस चिंतन का शुरूआती स्तम्भ "दलित की बेटी" सुश्री बहन मायावती से शुरू होता है जो की माया से मोह छोड़ ही नहीं पाई आगे चलकर कई दलित चिन्तक हुए अच्छी अंग्रेजी जानी अच्छे कपडे पहने और शायद आरक्षण के कारण अच्छी सिक्षा भी ली लेकिन मुह हमेशा गालियों से भरा ,अनावश्यक उत्तेजना इस बात को लेकर की सभी ब्राह्मण इनकी दशा के लिए जिम्मेदार है इनमे से कोई भी तार्किक बात करते हुए आपको मिल जायेगा पर आपके तर्क देने पर ये आपको भद्दी बैटन से नवाज देंगे इनका तो प्रतिशत शायद 99 हो !
अब एक और वर्ग जो इतिहासकारों से सम्बद्ध है जिनके घटिया इतिहास बोध के कारण लगभग 90 प्रतिशत मूर्ख प्रतिवर्ष पैदा हो रहे हैं और इन इतिहासकारों की और इनके उत्पादों की फ़ौज का आंकलन यदि जे।एन।यु,जैसे संस्थानों में जाकर करें तो प्रतिशत 95 भी हो सकता है।
राजनेताओं के बारे में प्रतिशत और उसकी व्याख्या करना ही बेकार है ये सबसे ज्यादा चालाक समझे जाने वाला वर्ग सर्वाधिक आसानी से समझा जा चूका है
अब एक चर्चा उन मूर्खों की हो जाये जो अतिवादी है इनका कोई धर्म नहीं है इनको मै "राष्ट्रिय चिंता "मानती हूँ वैसे तो इसमें कोई विशेष वर्ग नहीं है पर उल्लिखित सभी वर्गों के लगभग 90 फीसदी लोग अतिवादिता का रूप धारण कर चुके हैं 1
वैसे तो लगभग सभी ग्रामीण मजदूर और किसान वर्ग परेशानियों से जूझ रहा है पर इनमे से भी 90 फीसदी लोग बिभिन्न मजदूर एवं किसान संगठनो के जाल में फास चुके हैं अपना काम और समय बर्बाद करके इन संगठनो की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ रहे हैं !
तथाकथित समाजसेवियों से समाज को दूरगामी हानियों के लिए तैयार रहना होगा समाज के ये लोग भोले भले या कहे बेवकूफ लोगों को "अधिकार"जैसी खोखली बातों से बहला कर "कर्तव्यों "से दूर कर रहे है ,हर जगह बस लुभाने मात्र के लिए 90 फीसदी समाज सेवी अधिकारों का ढिंढोरा पीट करके उठान करने के बजे घृणा और विद्वेष फैला रहे हैं ,मजे की बात तो ये है की 90 फीसदी लोग इसे समझ हो नहीं प् रहे हैं और यही कारण है की अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग अपना राजनैतिक लाभ साध रहे हैं
धर्म गुरु तो वहशी हो चुके हैं 90 फीसदी धर्मगुरु परमात्मा के नाम पर काले धंधे चला रहे हैं ,जनता से धन उगाह रहे हैं और अपने भोग विलास में खर्च कर रहे हैं सैकड़ों सालो से इन धर्मगुरुओं ने ही अकेले सिद्ध किया है की 90 फीसदी जनता महामूर्ख है .......
काटजू सर ने तो सिर्फ सार को ही सामने रखा है अब कोई अदालत जाये या चौराहे पर खड़े होकर शोर मचाये यह सत्य तो बदल नहीं सकता इन आने वाले कुछ वर्षों तक ....