
मैंने कुछ मित्रों से इस बात पर चर्चा भी की है कि आपको नहीं लगता कि पत्थलगांव को श्याम मंदिर से पहले मुलभुत सुविधाओं की ज्यादा जरुरत है?? लगभग सभी का उत्तर हाँ में ही था लेकिन चाहते हुए भी उनमे से कोई भी यह साहस नहीं कर सका कि इसके खिलाफ आवाज़ उठाये या फिर कम से कम अपनी बात श्री श्याम मंदिर निर्माण समिति के लोगों तक पहुंचाए, ये लोग डरते हैं न या तो भगवान् से या फिर अपने घर वालों से कि कहीं उनकी so called धार्मिक आस्था को ठेस ना पहुँच जाए.
दोस्तों आप ऐसे चीज़ों पर इतनी बड़ी राशि खर्च करते समय ये क्यूँ भूल जाते हैं कि आपके नगर में १०० बिस्तरों वाला अस्पताल है लेकिन वो सिर्फ चिकित्सकों की कमी के कारण उपयोगी सिद्ध नहीं हो पा रहा, आप यह क्यूँ भूल जाते हैं कि जब आपके परिवार में किसी बच्चे का आगमन होने वाला होता है तो आप १ महीने पहले से ही ये सोचने लगते हैं कि कुनकुरी (करीब ७० किलोमीटर दूर) अस्पताल ले जाना ठीक रहेगा या फिर अम्बिकापुर (करीब ८५ किलोमीटर दूर) लेकिन जब बात आपके CSR (वह पैसा जो आप अपनी आय में से जन कल्याण के लिए खर्च करते हैं) को खर्च करने की आती है तो आपका ध्यान मंदिर, दुर्गा पूजा, अपने पूर्वजों की जयंती इत्यादि की तरफ ही जाता है, आप चिकित्सकों की अनुपलब्धता के लिए सरकार को जरुर दोषी ठहराते रहेंगे लेकिन आपके दिमाग में कभी यह नहीं आएगा कि इस १ करोड़ रुपये से मंदिर बनाने के बजाय क्यूँ न इसे बैंक में जमा करके इसके ब्याज से हम स्वयं एक चिकित्सक की व्यवस्था करें??
भले ही पथलगांव ने राज्य स्तरीय भाजपा अध्यक्ष, क्षेत्रीय सांसद से लेकर विधान सभा में उपनेता जैसे कद के भी राजनेता दिए हैं लेकिन यहाँ मूलभूत सुविधाओं का हाल किसी से छिपा नहीं है. NH - 78 भी पथलगांव के बीच से जाता है लेकिन उसके गड्ढे देखके यही लगता है कि अगर यह NH के बजाय प्रधानमंत्री ग्राम सड़क में आ जाता तो ही इसकी हालत ज्यादा अच्छी होती लेकिन बात सिर्फ यह नहीं है कि सरकार क्या क्या कर रही है, किधर कितना भ्रष्टाचार है, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण तो यह है वहां के नागरिक स्वयं पत्थलगांव के विकास में कितनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. आज दुर्गा पुजन हो, अग्रसेन जयंती हो या फिर श्री गुरुनानक जयंती हो तो लाखों रुपये इकठ्ठा होने में समय नहीं लगेगा, यही नहीं इनके बीच प्रतिस्पर्धा भी होगी कि कौन कितना सुन्दर मूर्ति, पंडाल इत्यादि बना रहा है, आज ३१ दिसम्बर मनाना हो तो युवा हेल्प क्लब, मित्र क्लब इत्यादि पुरे जोश के साथ लाखों रुपये खर्च करके मनाएंगे लेकिन इस बात पे किसी का ध्यान नहीं जाएगा कि क्यूँ ना नगर पालिका के सामने वाले गड्ढे को भरने के लिए ५००० रुपये चंदे से इकठ्ठा करवाए और रोड ठीक करवा दें. दोस्तों इस लेख का उद्देश्य किसी धर्मं, पंथ आदि को ठेस पहुंचाना या गलत बताना नहीं है अपितु सिर्फ यह याद दिलाना है कि मुर्तिसेवा/धार्मिक आडम्बर से कहीं ज्यादा जरुरी मानव सेवा है.
इस विषय पर हमारी ओर से एक प्रतीकात्मक तथा प्रश्नोत्तरी के रूप में एक छोटी सी कविता भी लिखी गयी है, वह भी आपसे शेयर कर रहा हूँ,
अजब हैरान हूँ भगवन, तुम्हे कैसे रिझाऊं मैं?
कोई वस्तु नहीं ऐसी जिसे सेवा में लाऊं मैं?
करूँ किस भांति आवाह्न,कि तुम तो सर्वव्यापक हो?
निरादर है बुलाने को अगर घंटी बजाऊं मैं.
तुम्ही हो मोतियों में भी, तुम्ही व्यापक हो फूलों में,
भला भगवन को भगवन पर कैसे चढाऊं मैं?
लगाना भोग तुमको ये, इक अपमान करना है,
खिलाता विश्व को जो है, उसे कैसे खिलाऊं मैं?
तुम्हारी ज्योति से ज्योतित है, सूरज चाँद और तारे,
महा अंधेर है तुमको अगर दीपक दिखाऊं मैं.
भुजाएं हैं न गर्दन हैं, न सीना है न मस्ताकादी है,
तुम्हे निर्लेप नारायण, कहाँ चन्दन लगाऊं मैं?
बड़े नादान है वे जन, जो गढ़ते आपकी मूरत,
बनाते विश्व को तुम हो, तुम्हे कैसे बनाऊं मैं?
अजब हैरान हूँ भगवन तुम्हे कैसे रिझाऊं मैं?
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं.
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Irony of Superstitious Idol Worship well explained in this poem : (प्रश्तुत है मूर्तिपूजा की खोखली सच्चाई को उजागर करती यह कविता) :
http://www.youtube.com/watch?v=o4y8jNCu8FQ
आनंद रूप भगवन, किस भांति तुमको पाऊं?
तेरे समीप स्वामिन, मैं किस तरह से आऊँ?
अनुपम परम छबीले, बिन रंग रस रसीले,
कंटक सखा है फुलवा, क्या तेरे सर चढाऊं?
सुख मूल भक्ति रूपम्, मंगल कुशल स्वरूपम्,
घड़ियाल शंख को क्या, सम्मुख तेरे बजाऊं?
गंगा है तेरी दासी, सेवक है इन्द्र तेरा,
तेरे शरीर पर क्या, दो चुल्लू जल चढ़ाऊँ?
छोटे से दास तेरे, रवि चन्द्र हैं उपस्थित,
करते हैं नित उजाला, घृत दीप क्या जलाऊँ?
श्री लक्ष्मी हैं तेरी, निशिदिन की चरणचेरी,
ताम्बे का एक पैसा, मैं नाथ क्या चढाऊं?
आगम निगम से लेकर, मेधा सरस्वती तक,
गुण तेरा गा रहे हैं, क्या गाके मैं रीझाऊँ?
कोटा-नु-कोटि भूमि, उन पर असंख्य प्राणी,
जगदीश अपना नंबर मैं कौन सा गिनाऊँ?
आनंद रूप भगवन, किस भांति तुमको पाऊं?
तेरे समीप स्वामिन, मैं किस तरह से आऊँ?